Friday, September 11, 2009

पैसा

.................................पैसा .........................................
भाई अपने उम्र के अब तक अनुभवों के आधार पर ये कविता आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ । पैसा कब और कहाँ हावी हो जाए ये कहना बहुत मुश्किल है । कभी सुर्खियों में रहा ये वाक्य .....खुदा की कसम पैसा खुदा तो नहीं मगर खुदा से कम भी नहीं ..... धीरे धीरे ही सही आमो - खास के जीवन के एक महत्वापूर्ण जगह को छीन चुका है । लेकिन क्या आदमी के जीवन की सीमा यहीं आकर ख़त्म हो जाती है । यह एक इन्सान के लिए सोचने वाली बात नहीं हो गयी है ।
..........................................पैसा ...........................................
पैसा है जैसा दुनिया है वैसी ...
पैसे की तो बात निराली ।
पैसा तो है बिल्कुल गोल ...
जो पता हो जाता गोल ।
बच्चे पैसा पैसा कह रोते है ...
बड़े पैसा पा खुश रहते है ।
अपने पराये हो जाते है ...
जब ये पैसा जाता है ।
फिर पैसे के आते ही ...
सब मिल कर रहते है ।
प्रेम का कारण भी है पैसा ...
द्वेष का कारण भी है पैसा ।
दुनिया पैसे पर चलती है ...
या पैसा दुनिया पर चलती है ...
ये कोई न जाना है फिर भी रोते पैसा - पैसा ।
पैसा है जैसा दुनिया है वैसी ...
पैसे की तो बात निराली ।