आदमी अपने जीवन में बहुत सारे सफल काम करता है ... मगर वह सफलता के पीछे जब मुड़ कर देखता है तो कुछ न कुछ छुटा -छुटा हुआ पाता है ... पूर्णता तो भगवान में है लेकिन वो बन्धनों से मुक्त ... सर्वत्र विद्यमान
और मोह माया से मुक्त है ... क्या ये आदमी में संभव है ... अगर हाँ तो मै ग़लत हूँ ।
........................................विवशता ..........................................
कुछ मिल न सका मेरे मन को ...
कुछ दे न सका ख़ुद के तन को ।
तृप्ति -अतृप्ति किसी ने भी ...
आकर्षित न किया मेरे मन को ।
ये कैसी अपूर्णता दी तुमने ...
धरती की आखों में आखे डाल कर
पूछता हूँ ...
और सोचने पर मजबूर हो जाता हूँ ...
ये कैसी विवशता दी तुमने ...
पूर्ण हो कर भी अपूर्णता मह्शूस करता हूँ ।
Monday, July 27, 2009
अभिलाषा
भाई बड़े बुजुर्ग क्या खूब कहते रहे ... पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब ... खेलोगे कूदोगे तो होगे बर्बाद ... इस अदभुत वाणी को कुछ ही गिने -चुने युवाओ ने ग़लत साबित किया है ... मगर ज्यादातर ने सच ही साबित किया है । जवानी की मदहोशी कहे या बेहोशी ... बेफिक्र रहना कोई युवाओ से सीखे । उन्ही खास युवाओ के प्रति समर्पित है मेरे कुछ शब्द । जो कही न कही ये मेरी जिन्दगी पर भी कटाक्ष करती है ।
.....................................अभिलाषा......................
हर पल बिताया था मैंने ...
चंचल भोग विलाश में ।
हर पल चल निकला करता था...
सपनो की बारात में ।
कुछ मिल न सका मेरे मन को ...
कुछ दे न सका ख़ुद के तन को ...
और खो दिया ख़ुद को ...
सुख की अभिलाषा में ।
मेरे स्वप्न सिमट कर रह जाते है ...
दुःख के आलिंगन में ।
हाय हर पल बिताया मैंने
चंचल भोग विलाशों में ।
.....................................अभिलाषा......................
हर पल बिताया था मैंने ...
चंचल भोग विलाश में ।
हर पल चल निकला करता था...
सपनो की बारात में ।
कुछ मिल न सका मेरे मन को ...
कुछ दे न सका ख़ुद के तन को ...
और खो दिया ख़ुद को ...
सुख की अभिलाषा में ।
मेरे स्वप्न सिमट कर रह जाते है ...
दुःख के आलिंगन में ।
हाय हर पल बिताया मैंने
चंचल भोग विलाशों में ।
Sunday, July 26, 2009
क्या उनका कोई अरमान न था
............................... करगिल युद्घ के वीर सपूतो को मेरा नमन ...............................................
करगिल युद्घ में विजयी हुए हमे दस साल बीत गये ... देश विजय- दशमी मना रहा है ... विजय -दशमी पर मै उन शहीदों को नमन करता हूँ , जो मिट गये देश के लिए ... लेकिन क्या हम उन शूर वीरों को उचित आदर दे पा रहे है ... क्या सिर्फ़ उन्हें याद करना या उनके प्रतिमा पर फूल चढ़ाना ही हमारा मकसद रह गया है ...
.................. आपके लिए बस इतना ही ...............
हम है रोते ... तुम भी रोते
कलिया रोती... फूल भी रोते ...
लतिकाए भी ... तरु भी रोते ...
इन्हे देख आकाश भी रोता ।
झड़ जाते पतझड़ में जो पत्ते ...
क्या उनका कोई अरमान न था ।
तोडे जाते फूल जो हाथो से ...
क्या उनका कोई अरमान न था ।
मिट गये जो हँसते-हँसते ...
क्या उनका कोई अरमान न था ।
शहीदों की मर्म कथाएँ इतिहास संभाले चलता है ...
अब बात -बात पर बारूदे फटती ...
तलवारों की खनक है होती ...
खून की ये लाली कहती है ...
यह जीवंत प्रतिमा मै देख रहा ...
सोए इनके अरमान है कितने ।
करगिल युद्घ में विजयी हुए हमे दस साल बीत गये ... देश विजय- दशमी मना रहा है ... विजय -दशमी पर मै उन शहीदों को नमन करता हूँ , जो मिट गये देश के लिए ... लेकिन क्या हम उन शूर वीरों को उचित आदर दे पा रहे है ... क्या सिर्फ़ उन्हें याद करना या उनके प्रतिमा पर फूल चढ़ाना ही हमारा मकसद रह गया है ...
.................. आपके लिए बस इतना ही ...............
हम है रोते ... तुम भी रोते
कलिया रोती... फूल भी रोते ...
लतिकाए भी ... तरु भी रोते ...
इन्हे देख आकाश भी रोता ।
झड़ जाते पतझड़ में जो पत्ते ...
क्या उनका कोई अरमान न था ।
तोडे जाते फूल जो हाथो से ...
क्या उनका कोई अरमान न था ।
मिट गये जो हँसते-हँसते ...
क्या उनका कोई अरमान न था ।
शहीदों की मर्म कथाएँ इतिहास संभाले चलता है ...
अब बात -बात पर बारूदे फटती ...
तलवारों की खनक है होती ...
खून की ये लाली कहती है ...
यह जीवंत प्रतिमा मै देख रहा ...
सोए इनके अरमान है कितने ।
Saturday, July 25, 2009
मैंने देखा है कैक्टस के फूलों को ...
कुछ सहमे हुए से
मगर एक आत्म विश्वास के साथ ...
काँटों के दर्द से बेपरवाह
हवा के हर झोंके का एहसास करते ...
लेकिन ...
हद में किसी का इंतजार करते
की शायद कोई पहचान ले खुशबू उसकी ...
और कर दे आजाद
काँटों के अलबेले बंधन से
बस मैंने देखा है ... कैक्टस के फूलों को किसी का इंतजार करते ।
कुछ सहमे हुए से
मगर एक आत्म विश्वास के साथ ...
काँटों के दर्द से बेपरवाह
हवा के हर झोंके का एहसास करते ...
लेकिन ...
हद में किसी का इंतजार करते
की शायद कोई पहचान ले खुशबू उसकी ...
और कर दे आजाद
काँटों के अलबेले बंधन से
बस मैंने देखा है ... कैक्टस के फूलों को किसी का इंतजार करते ।
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