Saturday, December 5, 2009

मूर्ति

..............................................मूर्ति.........................................
कई बार मैंने ज़िन्दगी को करीब से देखने की कोशिश की, लेकिन हर बार असफलता ही हाथ लगी ... ज़िन्दगी ने हर बार मुझसे कुछ माँगा... लेकिन मै तो बस सांसों का पंथी हूँ ... साथ आयु के चलता हूँ ... मेरे साथ सभी चलते है ... बादल भी...तूफ़ान भी ... बस मै एक मूर्ति हूँ...देखता हूँ मगर कुछ बोल नहीं सकता ।

मूर्ति
मेरे मन की मूर्ति सामने खड़ी
मांगती है दान
इधर मुझे झकझोर रहा है
भावों का तूफ़ान ...
उषा का घूँघट दूँ
या ...
संध्या का असित वितान ...
मेरे मन की मूर्ति सामने खड़ी मांगती है ...दान

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