Monday, July 27, 2009

अभिलाषा

भाई बड़े बुजुर्ग क्या खूब कहते रहे ... पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब ... खेलोगे कूदोगे तो होगे बर्बाद ... इस अदभुत वाणी को कुछ ही गिने -चुने युवाओ ने ग़लत साबित किया है ... मगर ज्यादातर ने सच ही साबित किया है । जवानी की मदहोशी कहे या बेहोशी ... बेफिक्र रहना कोई युवाओ से सीखे । उन्ही खास युवाओ के प्रति समर्पित है मेरे कुछ शब्द । जो कही न कही ये मेरी जिन्दगी पर भी कटाक्ष करती है ।
.....................................अभिलाषा......................
हर पल बिताया था मैंने ...
चंचल भोग विलाश में ।
हर पल चल निकला करता था...
सपनो की बारात में ।
कुछ मिल न सका मेरे मन को ...
कुछ दे न सका ख़ुद के तन को ...
और खो दिया ख़ुद को ...
सुख की अभिलाषा में ।
मेरे स्वप्न सिमट कर रह जाते है ...
दुःख के आलिंगन में ।
हाय हर पल बिताया मैंने
चंचल भोग विलाशों में ।

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