............................... करगिल युद्घ के वीर सपूतो को मेरा नमन ...............................................
करगिल युद्घ में विजयी हुए हमे दस साल बीत गये ... देश विजय- दशमी मना रहा है ... विजय -दशमी पर मै उन शहीदों को नमन करता हूँ , जो मिट गये देश के लिए ... लेकिन क्या हम उन शूर वीरों को उचित आदर दे पा रहे है ... क्या सिर्फ़ उन्हें याद करना या उनके प्रतिमा पर फूल चढ़ाना ही हमारा मकसद रह गया है ...
.................. आपके लिए बस इतना ही ...............
हम है रोते ... तुम भी रोते
कलिया रोती... फूल भी रोते ...
लतिकाए भी ... तरु भी रोते ...
इन्हे देख आकाश भी रोता ।
झड़ जाते पतझड़ में जो पत्ते ...
क्या उनका कोई अरमान न था ।
तोडे जाते फूल जो हाथो से ...
क्या उनका कोई अरमान न था ।
मिट गये जो हँसते-हँसते ...
क्या उनका कोई अरमान न था ।
शहीदों की मर्म कथाएँ इतिहास संभाले चलता है ...
अब बात -बात पर बारूदे फटती ...
तलवारों की खनक है होती ...
खून की ये लाली कहती है ...
यह जीवंत प्रतिमा मै देख रहा ...
सोए इनके अरमान है कितने ।
Sunday, July 26, 2009
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विरासत पर ध्यान है, बहुत खूब।
ReplyDeleteअमर शहीदों को नमन.
ReplyDeleteSundar rachna..!
ReplyDeleteAnek shubhkamnayen!
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बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
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